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श्रीजीज्योतिष

कुंङली में पूर्ण मंगलीक दोष विचार



हिन्दु समाज में लङके व लङकियों की कुंङली मिलाते समय मंगली दोष पर जोर दिया जाता हैं। जब पता चलता हैं कि लङका व लङकी मंगलीक हैं तो वह चिंतित हो जाते हैं। इस समय कुछ लोग घबङाकर नकली जन्म पञी भी बन वा लेते हैं। इस दोष के कारण विवाह में विलम्ब हो जाता हैं क्योंकि मंगलीक लङका व लङकी पंसद नहीं आते। सत्य तो यह हैं कि दाम्पत्य सुख का विचार करने वाले जो तथ्य हैं मंगलीक दोष उन में से एक हैं। यह दोष अकेला कुछ नहीं कर सकता ना सुखी ना दुखी। कई बार देखा जाता हैं कि जो मंगली नहीं होते उनमें भी नहीं बनती, विचार नहीं मिलते इस कारण मंगलीक के साथ-साथ सभी ग्रहों का आकलन करना चाहिये।

अगर किसी जातक की कुंङली में मंगलीक योग होता हैं तो वह जातक डर जाता हैं जब कि मंगल कभी अमंगल नहीं करता। मंगल से ही केवल मंगलीक नहीं होता वरन सुर्य,शनि,राहु और केतु के कारण भी अशुभ प्रभाव दिखायी देता हैं इस कारण डरना नहीं चाहिये। वैसे थोङे थोङे सभी मंगलीक होते हैं। जैसे सभी ग्रहों का प्रभाव जीवन व शरीर पर जरुरी हैं उसी तरह मंगल का प्रभाव भी जरुरी हैं क्योंकि मंगल ओज, पराक्रम, हिम्मत शक्ति का प्रतीक हैं जिस से कार्य करने की शक्ति मिलती हैं जिसकी जीवन में जरुरत पङती हैं।

कुंडली में यदि 1(लग्न), 4, 7, 8 और 12 भावों में मंगल होने पर जातक व जातिका मंगलीक होती है लेकिन पूर्ण मंगलीक के लिये लग्न कुङली, चंद्र कुङली और शुक्र कुङली से मांगलिक होना चाहिये लग्न कुंडली से मंगलीक हो, चंद्र कुङली से मंगलीक हो और शुक्र कुङली से मंगलीक हो तब जातक व जातिका मंगलीक या पूर्ण मंगलीक होता हैं।


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लग्न कुंडली में मंगल यदि 1(लग्न), 4, 7, 8 और 12 भावों में हो तो वह कुंडली मांगलिक होती है जैसा कि लग्न कुंडली के चित्र में दिखाया गया है यह कुंडली लग्न से मंगलीक होती हैं लग्न से मांगलिक कुंडली शरीर पर प्रभाव करती हैं और वह व्यक्ति स्वभाव से उग्र व जिद्दी होता है।

चंद्र कुंडली में मंगल यदि 1(लग्न), 4, 7, 8 और 12 भावों में हो तो वह कुंडली मांगलिक होती है जैसा कि चंद्र कुंडली के चित्र में दिखाया गया है यह कुंडली चंद्र कुंडली से मंगलीक होती हैं चंद्र से मांगलिक कुंडली मन पर प्रभाव करता हैं। क्योकि चन्द्रमा मन का स्वामी होता है।



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शुक्र कुंडली में मंगल यदि 1(लग्न), 4, 7, 8 और 12 भावों में हो तो वह कुंडली शुक्र कुंडली से मांगलिक होती है जैसा कि शुक्र कुंडली के चित्र में दिखाया गया है शुक्र से मांगलिक कुंडली वैवाहिक जीवन पर प्रभाव करती हैं।


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नोट : इस प्रकार तीनों कुंङलियों में मांगलिक होने पर पूर्ण मंगलीक योग बनता हैं कई लोग कहते हैं कि 28 वर्ष बाद मंगलीक दोष खत्म हो जाता हैं पर ऐसा नियम नहीं हैं यह दोष विवाह के बाद ही समाप्त होता है।


मंगलीक विचार इन 1(लग्न), 4, 7, 8 और 12 भावों में इस लिये किया जाता हैं :


कुंडली में पहला(लग्न) भाव स्वभाव का होता हैं यह भाव यदि मंगल से प्रभावित होगा तो जातक व जातिका तेजापन लिये होगी और उसका स्वभाव क्रोधी व लङने वाला होगा।

कुंडली में चौथा भाव सुख का होता हैं यदि यह भाव मंगल से प्रभावित होगा तो जातक व जातिका के सुख में कमी होगी। जनता, समाज और माता से तनाव होता है क्योंकि चौथा भाव सुख, माता, ससुर , वाहन , मकान और जनता का कारक होता हैं।

कुंडली में सप्तम भाव पत्नि का होता हैं यदि यह भाव मंगल से प्रभावित होता है तो जातक की पत्नि तेज होगी जिससे दाम्पत्य जीवन में तनाव होता है व पत्नी के स्वभाव को जिद्दी व क्रोधी बनाता है जिससे बात-बात पर झगङा होगा तथा स्वाथ्य पर असर पङेगा। सप्तम भाव में बैठे मंगल की नजर दशम भाव पर , प्रथम भाव पर व दुसरे भाव पर होगी। दशम स्थान आजीवका का होता है व दुसरा स्थान परिवार का होता हैं इस कारण मंगल अपना प्रभाव डालता है।

कुंडली में आठवाँ स्थान बाधा, आयु, पाप और ससुराल का कारक होता हैं यदि ये स्थान मंगल से प्रभावित होगा तो ये सभी बाधाए आती हैं व वर-वधु के परिवारों में तनाव पैदा करता हैं। यहाँ पर मंगल की स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती हैं।

कुंडली में बारहवाँ भाव से खर्च, जेल, विदेश याञा, नींद, भोग, पाँव और बांयी आँख का विचार किया जाता हैं यदि ये स्थान मंगल से प्रभावित होगा तो ये सभी परेशानिया होती है।






मांगलिक योग का परिहार(समाधान) :


मंगलीक कन्या का विवाह मंगलीक वर के साथ करने से मंगल का अनिष्ट दोष नहीं होता तथा वर-वधु के मध्य दाम्पत्य सुख बढ़ता हैं।

कन्या की कुंङली में जिस स्थान(भाव) पर मंगल बैठा हो और लङके की कुंङली में उसी स्थान(भाव) पर यदि शनि, मंगल, सुर्य और राहु स्थित हो तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता हैं।

यदि कुंडली में 1(लग्न), 4, 7, 8 और 12 भावों में मंगल यदि अपनी राशि 1(मेष) और 8(वृश्चिक) का हो तथा उच्च राशि 10(मकर) का हो तो कुंडली में मंगलीक दोष समाप्त हो जाता है।

यदि कुंडली में बलवान ग्रह गुरु व शुक्र लग्न में बैठे हो और बक्री, नीच, अस्त और शञु स्थान(भाव) पर मंगल बैठा हो तो उस कुंडली में मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है।

यदि वर-वधु में से एक की कुंङली में मंगल दोष हो और दूसरे की कुंङली में उन्हीं स्थानों(भावो) में शनि बैठा होने से मंगलीक दोष समाप्त हो जाता है और विवाह शुभ होता हैं।

यदि कुंडली में मंगल पर गुरु की नजर हो, केन्द्र भावस्थ राहु हो अथवा केन्द्र में राहु-मंगल का योग हो तो मंगलीक दोष नहीं होता हैं।

कुंडली में मंगलीक विचार करने के लिये चलित भाव कुंङली भी देखनी चाहिये।

कुंडली में 1(मेष) लग्न में पहले भाव पर स्थित मंगल, 8(वृश्चिक) लग्न में चौथे भाव पर स्थित मंगल, 2(वृष) लग्न में सप्तम भाव पर स्थित मंगल, 11(कुंभ) लग्न में आठवें भाव पर स्थित मंगल, 9(धनु) लग्न में 12(व्यय) भाव पर स्थित मंगल हो तो मंगलीक दोष नहीं होता है।

जब किसी लङके या लङकी की कुंङली में शुक्र व सप्तमेश बलवान होकर शुभ स्थान में स्थित हो तथा सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की नजर हो तो मांगलिक दोष प्रभाव हीन हो जाता हैं।

नोट : कई बार देखा जाता हैं कि कई लोग समान मंगलीक पञी से विवाह कर देते हैं इससे मंगलीक दोष तो खत्म हो गया लेकिन दोनों (वर-वधु) का मंगल स्वभाव 1(लग्न) भाव पर बैठा हो तो दोनों (वर-वधु) को बिगाङ देगा। समान भावों पर मंगलीक योग हानिकारक होता हैं क्योंकि मंगल व राहु झगङा प्रिय होते हैं।

हमे मंगली दोष ही नहीं, मिलान करते समय वर-वधु के गुण दोषों पर भी विचार करना चाहिये।

उपाय :
कुम्भ विवाह करना
पीपल से विवाह करना
महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जाप करवाना
शिवजी का अभिषेक करवाना


आज का पंचांग