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श्रीजीज्योतिष

नवग्रह


सूर्य ग्रह


सूर्य ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहो में राजा है ये तेज और शक्ति के कारण है। इन्ही से सब चर-अचर प्राणियों का जीवन है इनके बिना सृष्टि नहीं हो सकती। ये सबकी आत्मा है इन्ही से सभी प्राणियों को चेतना और यश भी मिलता है। ये साक्षात भगवान विष्णु का रूप है। भगवान विष्णु ही सूर्य भगवान के रूप में सब पर नजर रखते है और सबके कर्मो का अवलोकन करते है।

नवग्रह में सूर्य सिंह राशि का प्रतिनिधित्व करते है। यह राशि स्वाभिमानी, अपनी-अपनी चलाने वाली, तेजापन लिए होती है। इस राशि वाले लोग शीघ्र ही नाराज हो जाते है। इनको चापलूसी पसंद होती है।

सूर्य का देवता : श्री राम जी एवं श्री विष्णु भगवान होते है।
सूर्य को पाप ग्रह माना गया है।
सूर्य एक राशि पर 1 महीना रहता है।
सूर्य के चन्द्रमा, मंगल तथा गुरु(बृहस्पति) मित्र है।
सूर्य के शुक्र और शनि शत्रु है एवं बुध सम है।

सूर्य ग्रह सतगुणी होता है तथा इसकी जाति क्षत्रिय होती है।
सूर्य का तत्त्व अग्नि तथा आत्मा का कारक होता है।
सूर्य का स्वभाव क्रूर होता है तथा जन्मपत्री में पिता से संबंध होता है।
सूर्य सिंह राशि का स्वामी होता है सूर्य की उच्च राशि मेष व नीच राशि तुला होती है।
सूर्य का प्रभाव शरीर में सिर और नेत्रों में होता है। तथा यह पूर्व दिशा का स्वामी होता है।
सूर्य का नग : माणिक तर्जनी उंगली में सोने में धारण करना चाहिए।

सूर्य का मंत्र - "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
जाप की संख्या : 7000 मंत्र
जाप का समय : सूर्योदय के समय
सूर्य का दान : माणिक, तांबा, लाल चन्दन, घी, गुड, मिठाई, सोना, लाल वस्त्र और फल, केशर आदि।




चन्द्र ग्रह


ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा की बहुत वन्दना की है इनके पिता का नाम अत्रि ऋषि और माता का नाम अनसूया जी है। चन्द्र देव का विवाह प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों के साथ हुआ। ये सभी की पीड़ा, दुःख का हरण करने वाले है। इसी कारण चन्द्र देव को कलाधर भी कहा जाता है। इनकी सोलह कलाएं सभी जातको को सुख प्रदान करती है। इसी चन्द्र वंश में भगवान श्री कृष्ण जी ने अवतार लिया जो सोलह कला अवतार माने जाते है। चन्द्र देव की(श्री कृष्ण जी की) सोलह कला इस प्रकार से है।

1 : अमृता 9 : चन्द्रिका
2 : पूषा 10 : कांति
3 : मानदा 11 : ज्योत्सना
4 : पुष्टि 12 : श्री
5 : तुष्टि 13 : प्रीति
6 : रति 14 : अंगदा
7 : धृति 15 : पूर्णा
8 : शशनी 16 : पूर्णामृता


वैसे तो वेद का मंत्र है ॐ सुषुमण: सूर्य रश्मिशचन्द्रमा गन्धर्व:स्तस्य ना ------

इस प्रकार चन्द्र देव सूर्य भगवान की रश्मि है। उसके बाद उन्होंने अत्रि ऋषि के यहाँ जन्म लिया।

हमारे जीवन में चन्द्रमा का बहुत प्रभाव रहता है। प्रति दिन का जो फलादेश लिखा जाता है वह चन्द्रमा को आधार बनाकर लिखा जाता है।

नवग्रहों में चन्द्र और सूर्य ही ऐसे ग्रह होते है एक-एक राशि के स्वामी है। इस कारण चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी होता है। इससे कोमलता व दयालुता के बारे में विचार किया जाता है।

कारक : माता-पिता, चित्तवृत्ति, शारीरिक पुष्टि, राजानुग्रह, सम्पत्ति, शारीरिक रोग, पाण्डु रोग, जलन, कफ रोग, स्त्री रोग, मानसिक रोग, मन, नेत्र का विचार किया जाता है ब्लड प्रेशर भी इसी ग्रह से देखा जाता है।

चन्द्रमा से मधुर बोलने वाला, गौरवर्ण, प्रतिभाशाली, रुपरस वासना, तथा ऐसे लोगो का प्रति निधित्व करता है जो भाविक व तरंगी होते है।

चन्द्रमा का देवता : शिव शंकर भगवान है
मंत्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नम:
जप संख्या : 11000 मंत्र
समय : संध्याकाल
दान : चावल, दूध, दही, घी, चांदी, सफ़ेद कपडा, कपूर आदि।






मंगल ग्रह


मंगल ग्रह शक्ति का प्रतिक है। इनको देवताओ की सेना का अध्यक्ष पद मिला है। मंगल का स्वभाव तेज होता है ये मंगल देव जल्दी से गर्म(गुस्से) में हो जाते है। इनकी प्रकृति अत्यंत झगड़ालू होती है। इसी कारण मंगल से सम्बंधित दोष(मंगली दोष) होने के कारण विवाह आदि में ज्यादा विचार किया जाता है। मंगल ग्रह चुस्त व चालाक होता है। इसका शरीर कृशकाय, दृढ़, चुस्त, शीघ्र रुष्ट होने वाला तथा बहुत ज्यादा उतावला होता है परिणाम चाहे कुछ भी हो।

मंगल ग्रह को दंड का अधिकारी माना जाता है कारण कि जो व्यक्ति धर्म की मर्यादा को नहीं मानता है उसे ये दंड देते है। इसी कारण इस ग्रह को क्रूर ग्रह भी कहा जाता है। वैसे तो मंगल ग्रह यदि शुभ हो तो ओज व शक्ति प्रदान करता है। यह बल का देवता होता है और शरीर में बल(शक्ति) की ज्यादा जरुरत होती है। इस कारण इस ग्रह की पूजा करनी चाहिए।

मंगल ग्रह पूर्ण रूप से शरीर में रक्तचाप व मास का प्रतिनिधित्व करता है। यदि एक्ट आदि में दोष हो तो समझना चाहिए कि जन्म पत्री में मंगल ग्रह खराब है। इसको बलवान बनाना चाहिए।

मंगल का देवता : मंगल ग्रह को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की उपासना शुभ रहती है।
मंगल का मंत्र : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: ।
जप संख्या : 10,000 मंत्र। जप का समय : सूर्योदय।
मंगल का नग : मूंगा नग सोने में अनामिका रिंग में मंगलवार को डाले।
मंगल का दान : मसूर की दाल, मूंगा, तांबा, बतासे, मीठी रोटी, सौफ, गुड, घी, लाल वस्त्र, लाल चन्दन आदि।

मंगल ग्रह मेष, वृश्चिक राशि का स्वामी होता है तथा मूल त्रिकोण राशि मेष होती है।
भ्रमण का समय : मंगल ग्रह एक राशि पर डेढ़ महीना रहता है।
मंगल का गुण : तमोगुणी व जाति क्षत्रिय होती है।
मंगल की उच्च राशि मकर व नीच राशि कर्क होती है तथा रंग लाल होता है।




बुध ग्रह


बुध ग्रह चन्द्रमा का ओरस पुत्र है। इसको गुरु(बृहस्पति) ने नपुंसक होने का श्राप दिया है। यह बुध ग्रह सभी ग्रहो में नपुंसक होता है। इस कारण इसकी संज्ञा पुरुष नपुंसक की होती है। यह ग्रह हमेशा सूर्य ग्रह के साथ में ही रहता है। इसका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता। जिस ग्रह के साथ होता है उसका बल बढ़ाता है। यह उत्तर दिशा का स्वामी होता है।

यह त्रिदोष कारी ग्रह है अर्थात बुध के खराब(कमजोर) होने पर त्रिदोष(वायु, कफ, पित्त) से संबंधित रोग होनेकी सम्भावना रहती है। बुध ग्रह नपुंसक होने के कारण ना तो सुख देता है ना ही दुःख देता है। इसका प्रभाव साथ में रहने वाले ग्रह के साथ भी होता है सुख देने वाले ग्रहो के साथ होने पर सुख देता है और दुःख देने वाले ग्रहो के साथ होने पर दुःख देता है। बुध ग्रह जल जैसा होता है जिसमे डाला जाये उसी ग्रह के साथ मिल जाता है।

बुध ग्रह मिथुन और कन्या राशि का स्वामी होता है तथा इसकी मूल त्रिकोण राशि कन्या होती है।
बुध ग्रह कभी धीरे कभी जल्दी भ्रमण करता है। ज्यादातर एक राशि पर पौन(3 सप्ताह) महीना रहता है।
बुध ग्रह मस्तिष्क उसकी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। ये पीड़ित होने पर कई कष्ट देता है। सिर पर चोट भी लगाता है। इस कारण बुध ग्रह को बलवान करना चाहिए।

बुध का मंत्र : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: ।
बुध का देवता : बुध को प्रसन करने के लिए दुर्गा देवी की आराधना व सप्तशती का पाठ करना चाहिए।
जाप की संख्या : 9000 मंत्र, जाप का समय : सूर्योदय।
बुध का नग : पन्ना सवा पांच रत्ती का सोने में सबसे छोटी रिंग में बुधवार को पहने।

बुध का दान : सोना, पन्ना, घी, हरी सब्जी, मूंग की दाल, हरा कपडा, गाय को चारा आदि।
बुध का गुण : रजोगुणी, कारक : वाणी तथा सम्बन्ध : बंधुओ, मित्रो से होता है।
बुध का स्वभाव : मिश्र तथा प्रकृति : वायु, पित्त और कफ होती है।
बुध की दिशा उत्तर होती है। तथा दृष्टि सातवी राशि पर होती है।



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