जब कोई भी पूर्वज किसी अशुभ योनि में चला जाता हैं या उसकी किसी प्रकार की वासनाएँ शेष रह जाती हैं या उसकी गति नहीं होती या उसके अंतिम संस्कार में कोई कमी रह जाती हैं या पुत्र ने पिता को परेशान किया हो या वह जीव नर्क में गया हो और वह अपने उद्धार की इच्छा करता हो तो यही पुत्र की जन्म पत्री में पितृ दोष के रुप में दिखाई देता हैं। इसी दोष को पितृ दोष कहते है. पंडित जी जातक व जातिका के कुंडली में ग्रहों को देखकर ये बताते हैं कि तुम्हारी जन्म पञी में पितृ दोष हैं या नहीं।
तब जातक पितृ शांति के उपाय या अपने पुर्वजो की वासनाओ को पूरा करके अपने पिता या पुर्वज को सदगति दिलाता हैं। जिससे उसके पुर्वजो की गति मिलती है और जातक व जातिका का जीवन सुखी होता है
यदि पुञ जीते-जी अपने माता पिता की सेवा करे तो पितृ दोष नहीं होगा। हम यहाँ पर आपको कुछ योगो व उनके उपाय के बारे में बता रहे है।
योग : जब जन्म कुंङली के 1(लग्न), 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भावों में सुर्य-राहु एक साथ होते है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है तब जातक व जातिका की कुंडली में पितृ दोष होता है।
यदि जन्म कुंङली के 1(लग्न), 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भावों में सुर्य-शनि एक साथ हो तो भी कुंडली में पितृ दोष होता है। जैसा कि दूसरे चित्र में दिखाया गया है
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जन्म पञी में राहु पहले(लग्न) भाव में हो तो भी पितृ दोष होता हैं। जैसे कि चित्र में है।
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यदि जन्म पञी में राहु आठवें या बारहवें भावो में बैठा हो तो भी जातक व जातिका को प्रेत-बाधा होती हैं जैसा कि दूसरे चित्र में दिखाया गया है।
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जन्म पञी में गुरु आठवें या बारहवें भावो में बैठा हो तो जातक व जातिका की कुंडली में पितृ दोष होता हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
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जन्म पञी में लग्नेश राहु-केतु से प्रभावित हो तो पितृ दोष होता हैं।
यदि जन्म पञी में दशम भाव का स्वामी आठवें भाव में बैठा हो व उस पर राहु कि नजर होने पर पितृ दोष होता हैं।
जातक व जातिका की जन्म पत्री में यदि 1(लग्न), 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भावों में 10 नंबर का गुरु हो तो वह गुरु नीच का होता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कुंडली में गुरु नीच का होने से पितृ दोष होता हैं।
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जातक व जातिका की जन्म पत्री में यदि 1(लग्न), 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भावों में 7 नंबर का सुर्य हो तो वह सुर्य नीच का होता है जैसा कि दूसरे चित्र में दिखाया गया है कुंडली में सुर्य नीच का होने पर भी पितृ दोष होता हैं। चित्र
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दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोना चाहिए उस दिशा में पिञो की कोई तस्वीर रखें तथा श्राद्ध तिथि पर तर्पण करें।
ब्राह्मणों को पूर्वजो के नाम का भोजन करवाए और उन्हें वस्त्र व दक्षिणा दे अपने पूर्वजो को भोजन, वस्ञ व दक्षिणा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं।
हर अमावस को पित्रो का ध्यान करके पीपल पर कच्ची लस्सी, चीनी और चावल चढावें और उसकी परिक्रमा करें।
पितृ गायञी मंत्र का सवा लाख का जाप स्वयं करें या फिर किसी ब्राह्मण से करावें। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं।
गायञी मंञ का सवा लाख जाप करने से पितृ दोष शान्त होता हैं।
नारायण कवच का पाठ करने से पिञो की सदगति होती हैं।
गया जी , पेहवा , पिण्डारक , हरिद्वार , कुरुक्षेञ में जाकर अपने पूर्वजो का पिण्ड दान करना चाहिए। अपने पूर्वजो का पिण्ड दान करने से उनकी सदगति होती हैं।
हर अमावस को यमुना नदी में स्नान करें , तर्पण करें इससे पितृ दोष शान्त होता हैं।
गाय को चारा खिलाने से, कोओ को भोजन कराने से और कुत्तो को भोजन कराने से पितृ दोष शान्त होता हैं।
अपने कुल के देवी या देवता की पुजा करने से पिञ प्रसन्न होते हैं।
लङकी , बहन, भुआ का सम्मान करने से पिञ प्रसन्न होते हैं।
सर्प-पुजा , ब्राह्मण भोजन जैसे शुभ कार्य करने से पिञ प्रसन्न होते हैं।