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श्रीजीज्योतिष

ज्योतिष सीखिये



हमारे जीवन में जो कुछ घटित होता हैं वह सब ग्रहों के प्रभाव समयानुसार होता हैं जैसे :- दुःख, सुख, लाभ, हानि, जय, पराजय, यश, अपयश, मिञता, शञुता आदि। सब ग्रहों से होता हैं । ग्रह हमारे पिछले प्रारब्ध को बताते हैं कि यह जातक किस कर्म भोग का अधिकारी होता हैं सुखी या दुखी, तभी तो इस ब्राहमाण्ड में कोई सुखी होता हैं और कोई दुःखी होता हैं।

ज्योतिष शास्ञ में 9 ग्रह प्रभाव देने वाले माने गये हैं सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु । इनके शुभ होने पर सभी सुख, ऐश्वर्य, भोग, भूमि, मकान की प्राप्ति होती हैं और अशुभ होने पर कलह, कष्ट, बाधा, परेशानी होती हैं। जिस समय बालक का जन्म होता है उस समय कोन सा ग्रह उस जातक पर प्रभाव डालता है। उसी के अनुसार उसका स्वभाव, रंग, गुण आदि होता है। इस कारण कोई तेजस्वी होता हैं तो कोई धर्म को मानने वाला, तो कोई माता-पिता को न मानने वाला होता हैं। शुभ ग्रह का फल शुभ व अशुभ ग्रह का फल अशुभ होता हैं।

सबसे पहले हम 12 राशियों के बारे में जानें। हर राशि का अपना महत्त्व होता हैं।


1 : मेषः--पुरुष प्रधान, चर , अग्नि पूर्ण दिशा की सूचक हैं, उग्र प्रगति वाली मष्तिष्क की प्रतीक, सीमा और अभिमान का बोध कराती हैं। इसका स्वामी मंगल होता हैं।

2 : वृष :-- स्ञी गुण वाली, स्थिर, शीतल, दक्षिण दिशा की सूचक स्ञी गुण वाली, शुभ किन्तु स्वार्थी स्वभाव, भौतिक सुखों से समर्थ। इसका स्वामी शुक्र होता हैं।

3 : मिथुनः--पुरुष गुण वाली, द्विस्वभामी, गरम स्वभाव, वाचाल, विद्याभिलाषी तथा हाथ व कंधो की कारक राशि हैं।पश्चिम दिशा की स्वामिनी राशि हैं। इसका स्वामी बुध होता हैं।

4 : कर्कः--यह चर राशि हैं। स्ञी गुण प्रधान, जल स्वभाव, लाल श्वेत मिश्रित वर्ण वाली, उच्चाभिलाषी, प्रगतिशील, गुर्दे, पेट का कारक राशि हैं। इसका स्वामी चन्द्रमा होता हैं।

5 : सिंहः--यह राशि स्थिर हैं।अग्नि तत्व, गरम स्वभावी हैं, भ्रमण प्रिय दिशा की स्वामिनीं स्वतंञता प्रेमी तथा ह्रदय की कारक हैं।इसका स्वामी सूर्य होता हैं।

6 : कन्याः--यह राशि मिथुन की तरह द्विस्वभावी हैं।दक्षिण दिशा की प्रतीक हैं।धरती तत्व, यह राशि पेट तथा लीवर की कारक हैं।इसका स्वामी बुध होता हैं।

7 : तुलाः-- यह राशि चर राशि हैं। वायु तत्व प्रधान हैं। पश्चिम दिशा की स्वामिनी हैं। विद्वानों , महापुरुषों की कारक राशि हैं, इस राशि के द्वारा कटी व गुप्त अंगों पर विचार किया जाता हैं। इसका स्वामी शुक्र होता हैं।

8 : वृश्चिकः-- यह राशि एक स्थिर राशि हैं।यह राशि अर्ध जल राशि होने से दम्भी, जिद्दी, स्वाभिमानी, क्रुर और स्ञी के गुप्त अंगों की कारक राशि हैं। यह उत्तर दिशा की राशि हैं। इस राशि का स्वामी मंगल होता हैं।

9 : धनुः-- यह राशि द्विस्वाभावी, क्रूर, अग्नि तत्व, अर्ध जल राशि तथा पूर्व दिशा की स्वामिनी हैं। इससे पैरों और जंघाओ का विचार किया जाता हैं।इस राशि का स्वामी गुरु होता हैं।

10 : मकरः-- यह राशि एक चर राशि हैं। यह राशि बात स्वभाव वाली, भूमि तत्व, उच्चभिलाषी, चतुर दक्षिण दिशा कारक हैं। इस राशि द्वारा घटनाओं पर विचार किया जाता हैं। इस राशि का स्वामी शनि होता हैं।

11 : कुम्भः-- यह राशि एक स्थिर राशि हैं।पश्चिम दिशा की स्वामी, गरम स्वभावी, शान्त स्वभावी और धर्न स्थलो व पेट की आंतरिक रचना की सूचक होती हैं। इसका स्वामी शनि होता हैं।

12 : मीनः-- यह राशि द्विस्वभावी राशि हैं। उत्तर दिशा की स्वामी, जल तत्व, दया, दाद की प्रतीक हैं। इस राशि के द्वारा पैरों का विचार किया जाता हैं। इस राशि का स्वामी गुरु होता हैं।





अब हम आपको 9 ग्रहों के बारे में बता रहें हैं।


1 : सूर्यः-- उग्र स्वभाव का हैं। इसकी दिशा पूर्व हैं। इसमें अग्नि तत्व हैं। इसमें हल्की लाली और हल्का पीलापन हैं। यह पुरुष प्रधान और क्षञिय गुणों से युक्त हैं।

2 : चन्द्रः-- यह सौम्य ग्रह हैं। इसमें जल तत्व है। इसका रंग सफेद हैं। यह स्ञी प्रधान हैं। इसमें वैश्य और ब्राह्मण के तत्व मौजूद हैं। इसकी दिशा उत्तर पश्चिम हैं।

3 : मंगलः-- यह वीर, योद्धा और खूनी स्वभाव का ग्रह हैं। इसका रंग लाल हैं। इसमें अग्नि तत्व और पुरुष प्रधान गुण हैं। इसमें क्षञिय गुण हैं। दिशा दक्षिण हैं।

4 : बुधः-- यह चतुर और हास्य प्रधान ग्रह हैं। इसमें स्ञी और नपुंसक दोनों तत्व मौजूद हैं। बुध कभी बूढ़ा नहीं होता। इसमें जवानी की रंगीनियां सदैव भरी रहती हैं। इसे राजकुमार का प्रतीक माना जाता हैं। इसमें भूमि और वायु तत्व मौजूद हैं। इसमें बनिये के से गुण रहते हैं। इसका रंग हरा व दिशा उत्तर हैं।

5 : गुरुः-- यह भी पुरुष प्रधान राशि हैं। इसका स्वभाव मौन एवं शान्त हैं। इसमें क्षञियों जैसे गुण हैं। इसका रंग पीला हैं। इसमें अग्नि और जल दोनों तत्व मौजूद हैं।दिशा उत्तर- पूर्व हैं।

6 : शुक्रः-- इसका स्वभाव रसिक और कलात्मक हैं। इसमें स्ञी गुण हैं। इसमें भूमि और वायु तत्व हैं। इसका स्वभाव वैश्यों और शूद्रों जैसा हैं। इसका रंग सफेद हैं। दिशा दक्षिण- पूर्व हैं।

7 : शनिः-- यह गंभीर और दुष्ट स्वभाव का ग्रह हैं। इसमें नपुंसक और कहीं-कहीं स्ञी-पुरुष दोनों के ही गुण पाए जाते हैं। इसका रंग काला हैं। इसमें भूमि और वायु तत्व हैं। दिशा दक्षिण- पश्चिम हैं।

8 : राहुः-- इसमें शनि जैसे गुण हैं। रंग कत्थई हैं।

9 : केतुः-- इसमें मंगल जैसे गुण हैं। रंग धुन्धला और मटमैला हैं।



12 राशियों और 9 ग्रहों की जानकारी के बाद अब आपको ग्रहों के शञु, मिञ, उच्च, नीच और ग्रहों की दृष्टि जानना आवश्यक हैं जिसे हम एक टेबल के माध्यम से समझा रहे हैं।


सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु
मिञग्रह गुरु,
मंगल,
चन्द्र
सूर्य,
बुध
चन्द्र,
गुरु,
सूर्य
राहु,
शुक्र,
सूर्य
सूर्य,
मंगल,
चन्द्र
बुध,
शनि,
राहु
शुक्र,
बुध,
राहु
शनि,
शुक्र,
बुध
शनि,
शुक्र,
बुध,
सूर्य
शञुग्रह राहु,
शुक्र,
शनि
राहु,
केतु
बुध,
शनि,
राहु
चन्द्र,
मंगल,
केतु
शुक्र,
शनि
सूर्य,
गुरु
मंगल,
सूर्य,
चन्द्र
मंगल,
सूर्य,
चन्द्र
मंगल,
चन्द्र
समग्रह बुध बुध,
शनि,
मंगल
केतु,
शुक्र
गुरु,
शनि
राहु,
केतु,
बुध
चन्द्र,
मंगल,
केतु
गुरु,
केतु
गुरु,
केतु
राहु,
गुरु
उच्चराशि मेष (10') वृष
(3')
मकर (28') कन्या (15') कर्क (5') मीन (27') तुला (20') मिथुन (15') धनु
(15')
नीचराशि तुला (10') वृश्चिक (3') कर्क (28') मकर (15') मकर (5') कन्या (27') मेष (20') धनु
(15')
मिथुन (15')
मूल
ञिकोण राशि
सिंह वृष मेष कन्या धनु तुला कुंभ कर्क मकर
दृष्टियां 7 7 4,7,8 7 5,7,9 7 3,7,10 5,7,9 5,7,9
कार्यकाल 1 मास सवा 2
दिन
डेढ़
मास
20-25 दिन 13 मास 1 मास ढ़ाई
वर्ष
18 महीना 18 महीना


शुभ ग्रह

चन्द्र, बुध, शुक्र, केतु और गुरु।

पाप ग्रह

सूर्य, मंगल, शनि और राहु।


सभी ग्रह 2 ग्रुप में होते हैं।


1 : शुभ ग्रह का राजा सूर्य , के साथ चन्द्र, गुरु और मंगल।
2 : अशुभ ग्रह का राजा शनि के साथ बुध,शुक्र, राहु और केतु।



अब हम जन्म कुंङली के प्रत्येक भावों से क्या विचार किया जाता हैं यहाँ पर हम बता रहे हैं।


kundlichakra


1 : तनु भावः--इस भाव से किसी भी जातक के शरीर, प्रारम्भिक, जीवन, बचपन, स्वास्थ्य, आचरण, पुष्टता, रंग, गुण, आत्मबल, ख्याति, रुप, आयु, सुख, दुख, स्वभाव, शारीरिक गठन और चरिञ आ अध्ययन किया जाता हैं। मिथुन, तुला, कुम्भ, और कन्या राशि इस भाव में बलवान मानी गई हैं।

2 : धन भावः--इस भाव से धन, कोष, पैञिक- धन, कुटुम्ब, मिञ, पशु, बन्धन, जेलयाञा, आँख, नाक, स्वर, सुन्दरता, गायन, प्रेम, सुखभोग, क्रय-विक्रय, दलाली, भोजन, मौत का कारण का अध्ययन किया जाता हैं।

3 : सहज भावः-- जातक से छोटे भाई-बहिन, नौकर-चाकर, पराक्रम, हिम्मत, व्यापार, मेहनत, भूषण, साहस, शौर्य, धैर्य, गुर्दा, खाँसी, क्षय, श्वास, प्राणायाम, योगाभ्यास, वचन, भतीजे-भतीजियाँ का अध्ययन इस भाव से किया जाता हैं।

4 : सुख भावः-- मस्तिष्क शान्ति, घरेलू जीवन, माता का सुख, घर, गाँव, चौपाए, बन्धु-बान्धव, सुख-शान्ति, मिञ, अन्तः करण की स्थित, भूमि, वाहन, जायदाद, बाग-बगीचा, पेट से सम्बन्धित रोग, मनोरंजन, दया का अध्ययन इस भाव से किया जाता हैं। कर्क, मीन और मकर राशि इस भाव में बलवान मानी गई हैं।

5 : सुत भावः--विद्या, सन्तान, दादा, कार्य-प्रवीणता, भावनाएँ, बुद्धि, नीति, विनय, देशभक्ति, नौकरी छूटना, धन मिलने के उपाय, लाटरी, जुआ, नम्रता का अध्ययन इस भाव से किया जाता हैं।

6 : रोग भावः-- रोग, शञु, चिन्ता, भय, झगङे, मुकदमे, झंझट, क्षति, गुदास्थान, मामा की स्थिति, ननिहाल, पीङा, कर्ज, दुख, बीमारी का अध्ययन इस भाव से किया जाता हैं।

7 : जाया भावः-- जाया, स्ञी का स्वास्थ्य, मदन-पीङा, काम-क्रीङा, भोग-विलास, काम-चिन्ता, जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग, व्यापार, विवाह, प्रेम, प्रेम सफलता, प्रेमी-प्रेमिका मिलन, स्ञी का रुप रंग, स्ञी का रुप रंग, शील, चरिञ, तलाक का अध्ययन किया जाता हैं।

8 : आयु भावः--आयु, मानसिक व्यथा, मौत, पुरातत्व प्रेम, विदेश-निवास, गूढ़ युक्तियाँ, गङा हुआ धन, ॠण, मौत का कारण, पतन का अध्ययन इस भाव से किया जाता हैं।

9 : धर्म भावः--धर्म, भाग्य, भाग्योन्नति, धर्म-परिवर्तन, ईश्वर प्राप्ति, गुरु, तप, दैव-बल-पुण्य, तीर्थ-याञा, ऐश्वर्य, पिञ-सुख, दान, हवन, प्रसिद्धि, का अध्ययन किया जाता हैं। इस भाव में सूर्य व गुरु प्रबल कारक माने जाते हैं।

10 : कर्म भावः-- राज्य, कर्म, नौकरी, प्रतिष्ठा, पिता के सम्बन्ध में जानकारे, व्यापार, समाज, हुकूमत, अधिकार, भोग, कीर्तिलाभ, नौकरी का प्रकार, राजकीय पद आदि का विचार इस भाव से किया जाता हैं।मेष, सिंह राशि बलवान मानी गयी हैं।

11 : आय भावः-- लाभ, आमदनी, आवश्यकता-पूर्ति, गुप्त धन, राज-द्र्व्य, भूषण, गज, मोटर, बङे भाइयों की संख्या व उनसे सुख आदि का अध्ययन किया जाता हैं।

12 : व्यय भावः-- हानि, दान, cयय, दण्ड, व्यसन, विदेश याञा, शञु का विरोध, नेञ-पीङा, खर्च, मोक्ष आदि का अध्ययन इस भाव से किया जाता हैं।







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