1 : सदैव धर्म का पालन करना चाहिये। धर्म के 10 लक्षण "सत्य, संयम , बुद्धि, विद्या, धैर्य, क्षमा, दान, अस्तेय(चोरी ना करना), क्रोध ना करना और पविञता हैं।
2 : आचरण हीन मनुष्य कभी भी परमार्थ(किसी का भला) नहीं कर सकता हैं।
3 : किसी भी व्यक्ति को हवन में, बहन, बेटी, भुआ के यहाँ, अपने घर में, मिञ के यहाँ, मन्दिर में, गुरु और ब्राह्मण के यहाँ खाली हाथ नहीं जाना चाहिये।
4 : जप, तप, भजन, पाठ-पूजा बिना आसन निष्फल होते हैं। कुशा, कम्बल, रेशम का आसन श्रेष्ठ होता हैं।
5 : विष्णु भगवान की आरती 14 बार घुमानी चाहिये, 4 बार चरणों में, 2 बार जांघ में, एक बार मुख पर व 7 बार सर्वांग(पुरे) शरीर पर करने से सभी दुखो का नाश होता हैं।
6 : सूर्य नारायण की 7 बार, दुर्गा माँ की 9 बार, शिव शंकर की 11 बार और गणेश जी की 4 बार आरती करनी चाहिये।
7 : देवी की 1 बार, गणेश जी की 3 बार, सूर्य की 7 बार, विष्णु भगवान, श्री राम, श्री कृष्ण जी की 4 बार परिक्रमा तथा शिव जी आधी परिक्रमा करने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
8 : मन्दिर के पीछे या भगवान के पीछे कभी भी प्रणाम नहीं करना चाहिए क्योंकि भगवान ने पीठ से अधर्म को उत्पन्न किया और मुख से धर्म उत्पन्न किया। जो भी सतकार्य करना है उसे भगवान के सम्मुख ही करना चाहिए।
9 : सूतक(जन्म में) पातक(मृत्यु में) में मन्दिर में नहीं जाना चाहिये और ना ही घर में भगवान की पूजा आदि करनी चाहिए ना ही ब्राह्मण को प्रणाम करना चाहिए। जब शुद्धिकरण हो जाये तब ही सत्कार्य शुरू करने चाहिए।
10 : भगवान का भजन करने वालो को दूसरे का अन्न भोजन आदि कम से कम सेवन करना चाहिए क्योंकि अन्न से मन बनता हैं।
11 : भगवान की तरफ कभी भी पैर करके ना बैठे और ना ही सामने भोजन करें। ये सभी 32 अपराध हैं ये सभी बराहपुराण में लिखे है ईश्वर को ईश्वर ही माने। इनसे बचें (बराहपुराण)
12 : सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके संध्या बंदन या गायञी मंञ, गुरु मंञ का जप करना चाहिए ये नित्कर्म है।
13 : भगवान जी की आरती करने के बाद हाथ धोकर के ही भोग लगाना चाहिए। हाथ ना धोना भी बड़ा दोष होता है।
14 : अपना आसन, माला, मंञ, गुरु, ब्राह्मण इनको बार-बार नहीं बदलना चाहिए। मकान भी बार-बार ना बदलें।
15 : हमे रोज ही देवताओ का, ॠषि मुनियो का और पिञों का तर्पण करना चाहिए क्योंकि देवताओ ने सुख साधन दिये, ॠषियों ने शास्ञ दिये व पिञों ने शरीर दिया।
16 : घंटा शंख हर समय नहीं बजाने चाहिए आरती के समय ही बजाना शुभ होता है।
17 : मस्तक पर तिलक लगाकर ही पूजा-पाठ करना चाहिये। तिलक, रोली, चन्दन, भस्म जो भी हो जरुर लगाये क्योंकि तिलक लगाने से छठी इन्द्रिय जागृत होती हैं।
18 : किसी भी व्यक्ति को भोजन करते समय, भजन करते समय नहीं बोलना चाहिए।
19 : कभी किसी को भी भोजन करते समय उठना नहीं चाहिये क्योंकि उठकर पुनः भोजन करना मांस के समान खाने का दोष होता हैं।
20 : सूर्यग्रहण में 12 घंटे पहले और चंद्रग्रहण में 9 घंटे पहले सूतक होता हैं। ग्रहण काल में दिया गया दान भूमि दान के बराबर होता हैं।
21 : मंगलवार को कभी भी कर्ज नहीं लेना चाहिए और बुधवार को कर्जा नहीं देना चाहिये।
22 : कभी भी घर में टूटे-फूटे बर्तन व टूटी खाट नहीं रखनी चाहिये क्योंकि टूटे-फूटे बर्तन में कलियुग का निवास होता हैं।
23 : दान स्वंय अपने हाथ से करना चाहिये। सेवा भी स्वंय करनी चाहिये।
24 : ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिये। ब्रह्ममुहूर्त प्रातः 4 से 5-30 बजे तक होता हैं।
25 : श्राद में भोजन कराने से पहले ब्राह्मण को निमंञण देना चाहिए।
26 : सामान्यतः नवराञ 4 होते हैं 1.चैञ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक 2.आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से दशमी तक 3.आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से विजया दशमी तक 4.माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से दशमी तक (सारस्वत नवराञ)। इनमें से दो नवराञे प्रसिद्ध हैं चैञ व आश्विन। दो नवराञे गुप्त होते हैं वे शक्ति पीठों में होते हैं।
27 : श्राद्ध में 3 वस्तु पविञ होती हैं दौहित, कुतप ( दोपहर का समय), तिल। और 3 वर्जित होती हैं क्रोध, अध्वगमन (श्राद्ध करके एक स्थान से दुसरे स्थान में जाना), शीघ्रता (निर्णय सिन्धु) । ब्राह्मण के न मिलने पर पंचवलि निकाल दें 1.गाय 2.कुत्ता 3.कौआ 4.देवता 5.चीटीं फिर भोजन करें।
28 : वेध- एकादशी व्रतों में दशमी के साथ यदि मुहूर्तमाञ भी एकादशी का स्पर्श हो जाता हैं उसे वेध कहते हैं अतः दशमी विद्धा एकादशी व्रत कभी नहीं करना चाहिये।