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श्रीजीज्योतिष

श्रीजी "राधारानी" मंदिर बरसाना धाम


आपको जानकर प्रसन्न्ता होगी कि हम आपको "श्रीजी मंदिर (राधारानी) , बरसाना धाम" के बारे में जानकारी दे रहें हैं।


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श्री राधारानी (श्री जी) का मंदिर बरसाना धाम में ब्रह्माचल पर्वत पर स्थित हैं। जहाँ अखिल ब्रह्माण्ड की स्वामिनी श्री राधारानी (श्री जी) अपनी सखिया ललिता और विशाखा के साथ विराजती हैं। यह मंदिर भव्य, विशाल , सुन्दर, शोभनीय तथा आर्कषक हैं। यह मंदिर उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले से 43 किलोमीटर दूर बरसाना धाम में स्थित हैं। श्रीजी (राधारानी) ब्रज मण्डल की महारानी हैं। बरसाना महल वृन्दावन के नाम से जाना जाता हैं। यहाँ श्रीजी(राधारानी) विराजमान हैं जो श्री श्री नारायण भट्ट जी ने गहवरवन में प्रगट कीं , वहीं प्रगट श्रीजी (राधारानी) मंदिर में विराजती हैं। आज भी इनका दर्शन भक्तजन लाखों की संख्या में करते हैं। भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं व सभी आपदा दूर होती हैं।

दोहाः-- राधा राधा रटत ही, बाधा सब मिट जाए। कोट जनम की आपदा, राधा नाम लिये सों जाए॥

जैसे सच्चिदान्द भगवान श्री कृष्ण नित्य हैं समय-समय पर इस भूमण्डल में उनका आविर्भाव हुआ करता हैं उसी प्रकार सच्चिदानन्दमयी भगवती श्री जी (राधारानी) भी नित्य हैं।वास्तव में ये भगवान की निजस्वरुपा शक्ति होने के कारण भगवान से सर्वथा अभिन्न हैं। समय-समय पर लीला के लिये आविर्भूत-तिरोभूत हुआ करती हैं। नारद पंचतञ में कहा हैं कि :-

यथा ब्रह्म स्वरुपश्च श्री कृष्णः प्रकृतेः परः । तथा ब्रह्मस्वरुपा च निर्लिप्ता प्रकृतेः परा ।। आविभूविस्तिरोभावस्तस्याः कालेन नारद। न कृञिमा च सा नित्या सत्यरुपा यथा हरिः ।।



श्री बृषभानु जी के यहाँ राधा जी का प्राकट्यः


श्री बृषभानु जी नाम से प्रसिद्ध एक राजा थे। वे सभी सम्पदाओं से सम्पन्न तथा सभी धर्मों के परायण थे। वे महान कुल में उत्पन्न व सभी शास्ञों के जानने वाले थे। अणिमा-महिमा नाम की आठों सिद्धियों से युक्त , श्रीमान, धनी तथा उदार चेता थे। संयमी ,कुलीन, सदविचार से युक्त भगवान श्री कृष्ण के आराधक थे। उनकी भार्या देवी श्री कीर्तिदा थी। वे रुप यौवन से सम्पन्न ,महान राजकुल में पैदा हुई। श्री कीर्तिदा रानी महालक्ष्मी जी के समान भव्य, रुपवाली, परम सुंदरी थी। वे सर्व विद्याओं, गुणों से युक्त, श्री कृष्ण स्वरुपा तथा महापतिव्रता थी। उनके ही गर्भ में शुभदा भाद्रपद मास की राधाष्टमी प्रातः काल (कहीं मध्यान्ह काल) में राजचिन्हों से सुशोभित श्री वृन्दावनेश्वरी श्री राधिका जी (श्री जी) प्रकट हुई।

इनके अंग-प्रत्यंग अत्यन्त सुकुमार थे। जिनसे चंद्रमा की सी ज्योति निकल रही थी। उनका सौन्दर्य ञिलोकी में विलक्षण था तथा शरीर सब प्रकार के दोषों से सर्वथा मुक्त था। वेद शास्ञों में जिनका कृष्ण वल्लभा कह कर गुणगान हुआ हैं। वे राधा जी श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली कृष्ण प्रिया थी।





श्री श्रीनारायणभट्ट जी का जन्म व उनके द्वारा श्री जी(राधारानी) का प्रागट्यः



दक्षिण देश में मदुरापत्तन में भृगु वंशी श्री वत्स गोञीय, ॠग्वेदी, भैरव नामक महा विद्वान तैलंग ब्राह्मण रहते थे। वे मध्वमतावलम्बि वैष्णव व कृष्ण भक्त थे। उनके रंग नामक एक पुञ था जो भट्टभास्कर नाम से प्रसिद्ध हुए। भक्त भास्करभट्ट के दो पुञ हुए। बङे का नाम गोपाल जी तथा कनिष्ट का नाम


"श्री नारायण जी" था। यह नारायण जी ही चरिञ नायक, ब्रजोद्धारक, रासाचार्य्य, नारदावतार श्री श्री नारायण भट्ट जी हैं।


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एक समय ब्रजरसिक नारद जी तीर्थ समूह भ्रमण करते हुए कहीं भी शान्ति ना पाकर सर्वानन्दमय श्री ब्रजमण्डल में आये। किन्तु उस समय तीर्थ समूह लुप्त हो गये थे। तब ब्रजबिहारी ने दर्शन देकर कहा कि भो! नारद! तुम ब्रजरसिक, ब्रजपरायण, निरन्तर मेरे प्रेम से उन्मत्त हो।ब्रजमण्डल लुप्त हैं तुम शीघ्र ब्रज में जाओ, ब्रज का उद्धार करों व रासलीला का प्रकाश करों। नारद जी ने दक्षिण में जाकर देवी यशोमती के गर्भ में जन्म लिये। जन्म का समय 1588 सम्वत (1531 साल) वैसाख शुक्ल पक्ष नरसिंह जन्म दिवस का दिवा भाग हैं। आप धीरे-धीरे बढ़ने लगे। पिता जी ने जनेऊ संस्कार कराया। पितृव्य शंकर जी से व्याकरण, वेद, वेदांग पढ़ने लगें। द्वादश वत्सर वयस में समस्त विद्या में पांडित्य लाभ कर गुरु दक्षिणा देकर अपने घर आये। वहाँ ब्रज प्रदीपिका आदि धर्म ग्रंथ समूह का निर्माण किया। तदनन्तर गोदावरी स्नान को पधारें। उसी समय वहाँ श्री राधिका के साथ हरि ने दर्शन देकर कहा कि तुम शीघ्र ब्रजमण्डल जाओ। वहाँ पर लुप्त तीर्थों का उद्धार करों व रासलीला का प्रकाश करों। राधा कुण्ड में मदन मोहन जी की मूर्ति विराजित हैं। कृष्णदास ब्रह्मचारी सेवा कर रहें हैं, सनातन गोस्वामी भी वहाँ पर उपस्थित हैं तुम्हारे गुरु कृष्णदास ब्रह्मचारी जानना। तुम वहाँ जाकर मंञदीक्षा लेकर सम्प्रदाय रहस्य सीखों।






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