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श्रीजीज्योतिष

कुंङली में कालसर्प का दोष



राहु-केतु के द्वारा ही कालसर्प योग क्यों होता हैं क्योंकि राहु का अधिदेवता काल हैं व प्रति अधिदेवता सर्प हैं राहु-केतु के एक तरफ सभी ग्रह होने पर यह योग बनता है यह योग ज्यादा अनिष्टकारी होता है क्योकि राहु - झगड़ा, मुकदमा, रोग, खर्च, बाधा का कारक है तथा सर्प धन का कारक है इस कारण परेशानी, रोग व धन का नुकसान होता है ऐसी अवस्था में जातक व्यर्थ के कार्य करता रहता है। इस कारण इसका प्रभाव होने पर राहु योग ना कह कर, कालसर्प योग कहा जाता हैं। जिससे जातक शुभ कर्म करें और जीवन में सुख शान्ति पावें। सर्प धन का स्वरुप भी होता हैं जहाँ पर सर्प होगा वहाँ पर धन भी होगा इस कारण शुभ काल सर्पयोग में धन-लाभ व सुख मिलता हैं। अशुभ कालसर्प योग में धन हानि व शरीर कष्ट की सम्भावना बनती हैं।

कालसर्प योग जन्म कुंङली में उस स्थिति में बनता हैं जब कुंङली में समस्त ग्रह राहु-केतु से एक तरफ होते हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।



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यदि जन्म कुंङली में राहु-केतु से चंद्रमा बाहर निकल जाये तो अर्ध कालसर्प योग बनता हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।



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राहु के योग से जातक चतुर व चालाक बनता हैं कभी कभी ज्यादा चतुराई से नुकसान की सम्भावना बनी रहती हैं। ऐसे योग में समझदारी से काम लेना चाहिए कितने जातक आज भी है जो इस कालसर्प योग से प्रभावित हैं व असहनीय कष्ट, दुख तथा धन का नुकसान झेल रहे हैं परिवार में कलह, तनाव आदि बना रहता है लेकिन शुभ कालसर्प योग वाले जातक सुखी जीवन जी रहे हैं।

हम आपको यह बताना चाहते है कि यदि हमारा कोई पूर्वज सर्प योनि में गया हो या किसी कारण से सर्प का श्राप लगा हो तो यह योग बन जायेगा। जिससे हम उपाय द्वारा इस दुखत योग से छुटकारा प्राप्त कर सकेंगे। इस सर्प योग का प्रभाव कई महापुरुषों को भी हुआ हैं जिनका उद्धार भगवान व सन्तों के द्वारा हुआ हैं।

1 : राजा परीक्षित की सर्प दंस से मृत्यु हुई लेकिन श्री शुकदेव जी ने श्रीमदभागवत की कथा सुना कर परीक्षित का उद्धार किया। यह योग तब बना जब राजा परीक्षित ने शरभंग ॠषि के गले में मरा हुआ सर्प डाला। उनके पुत्र श्रृंगी ॠषि ने श्राप दिया कि जिसने मेरे पिता का गले में मरा हुआ सर्प डाल कर अपमान किया है उसकी मृत्यु तक्षक सर्प के द्वारा सात दिनों में हो।

2 : भीष्म पितामह जी की कथा महाभारत में आती हैं जब अर्जुन के बाण से घायल होकर बाणों की शय्या पर सोयें हुये थे उस समय उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण जी से पुछा कि मैंने जीवन में कोई पाप नहीं किया फिर भी मुझे कष्ट झेंलना पङ रहा हैं ऐसा क्यों। तब भगवान जी ने कहा कि यह तुम्हारे पिछले जन्मों का फल हैं तब भीष्म जी ने पिछले जन्मों को देखा तो 72 जन्म पीछे का दिखा कि वह एक राजा थे। एक दिन शिकार खेलनें के लिये जा रहे थे आगे एक सर्प रास्ता पार कर रहा था तब भीष्म जी ने सोचा कि यह रथ के नीचे आ जायेगा तब उन्होंने बाण से लेकर के सर्प को हटाया लेकिन संयोगवश वह सर्प कांटो पर पङा, सर्प के शरीरे में कांटे चुभ गये इसी दोष के कारण भीष्म जी को शरशय्या पर कष्टों को झेलना पङा।यही सर्प दोष ही कालसर्प योग होता हैं।


3 : एक अघासुर दैत्य भी अजगर की योनि में आया व सुदर्शन नामक विद्याधर भी अजगर की योनि में ॠषियों के श्राप से आया। जिसका भगवान श्री कृष्ण ने उद्धार किया।

4 : कितनी बार हमने देखा हैं कि सब लोगों के बीच में सर्प उसी को काटता हैं जिसका योग होता हैं। यह भी कालसर्प योग के कारण ही होता है।

5 : भागवत में कथा आती हैं एक नहुष नाम के राजा ने सौ अश्वमेध कर के स्वर्ग के राजा हुए। लेकिन घमंड में आकर इंद्र की पत्नी को अपनी पत्नी बनाने का विचार किया। तब इंद्रपत्नी शची गुरु बृहस्पति के पास गई तब उन्होंने सलाह दी कि नए इंद्र(नहुष राजा) को जाकर कहो कि आप मुझे प्राप्त करना चाहते हो तो उस रथ में सवार होकर आओ जिसमे घोड़ो की जगह ब्राह्मण संत लगे हो तब नहुष राजा ने ब्राह्मण, संतों को रथ में जोत दिया और बार-बार उन्हें सर्प सर्प कहने लगें अर्थात (जल्दी चलो जल्दी चलो) इस कारण संतों ने श्राप दिया कि तुम सर्प-सर्प ज्यादा करते हो इस कारण सर्प योनि में जाओ। कभी भी संतों का या किसी का अपमान नहीं करना चाहिये। यही सर्प योग हैं।

6 : मानसागरी के अध्याय 4 में लिखा हैं कि " लग्नाच्च सप्तमे स्थाने शनि राहु संयुतौ । सर्पेण बाधा तस्योक्ता शय्यायां स्वपतोSपिच ॥ 4-10 ॥


राहु-केतु का प्रभाव जीवन भर रहता हैं तथा राहु-केतु की दशा अन्तर-दशा में विशेष प्रभाव देखा जाता हैं। जब यह योग बना हो तब झगङा ना करें , वाद-विवाद ना करें, बहस ना करें अन्यथा राहु जेल तक पहुँचा देता हैं इस योग के समय बङी समझदारी से समय व्यतीत करना चाहिये।


राहु की उत्पत्ति :

समुद्र मंथन के समय अमृत पिलाने के लिये भगवान ने मोहिनी रुप धारण किया एक तरफ देवता बैठे ,दुसरी तरफ दैत्य बैठे सबसे पहले भगवान ने देवताओ को अमृत पिलाया लेकिन राहु ने देखा कि अमृत तो खत्म होने वाला हैं तो वह चुपचाप सूर्य और चंद्र के बीच में आकर बैठ गया और अमृत पी लिया। तब भगवान जी ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया तब सिर वाला भाग राहु बना और धङ वाला भाग केतु बना। अमृत पी लेने के कारण इस की देवताओ के साथ (नवग्रह) में पूजा होती हैं।इन की माता दानवराज हिरण्यकशिपु की पुञी सिंहिका थी और पिता विपुचिति नामक दानव था।




आज का पंचांग