1 : सूर्यः-- पिता का सुख, शरीर सुख, राजकीय कार्य, चिकित्सा, शास्ञ, राज्यकार्य, राज्य से मान-सम्मान, प्रसिद्धि, व्यापार, चरिञ, ऐश्वर्य, धैर्य, आरोग्य, भाग्य, न्याय, प्रामाणिकता, सत्ता, आयु योग और जीवनशक्ति का कारकत्व सूर्य ग्रह के पास हैं।
2 : चन्द्रः-- स्वास्थ्य, बुद्धि, मन, माता का सुख, शारीरिक सुंदरता, यश प्राप्ति, ऐश्वर्य, संपत्ति, शौक की चीजें , वाहन सुख, स्ञियां, आंखो की स्थिति, घर का सुख आदि का कारकत्व चंद्र के पास हैं।
3 : मंगल;-- छोटे भाई-बहनों का सुख, धैर्य, साहस, पराक्रम, शञु, युद्ध, रोग, उदारता, शस्ञविद्या, धनुर्विद्या, शूरता, उद्योग, लोहा, हथियार, शस्ञ, अग्नि भय, अपघात,चोरी, डकैती, काम, क्रोध्, मोह, मद, ज्वर, सुनार मैकेनिकल इंजीनियर आदि का कारक ग्रह मंगल हैं।
4 : बुधः-- बुद्धि, विद्या, चतुराई, मन की शान्ति, लेखन, कला-कौशल, गणित्शास्ञ, वाणी, विद्वता, लेखक, संपादक, मुद्रक, प्रकाशक, वकील, व्यापारी, एकांउटैंट, स्कूल मास्टर, पुस्तक विक्रेता, क्लर्क, सिर, मस्तिष्क आदि का कारकत्व बुध ग्रह के पास हैं।
5 : गुरुः-- संपत्ति, संतान, ऐश्वर्य, बुद्धि, धर्माभिमान, लेखन, राज्यकार्य, धार्मिक कार्य, विद्या, यश, कीर्ति, न्यायाधीश, वकील, तीर्थयाञा, विद्यालय के प्राचार्य आदि का कारकत्व गुरु के पास हैं।
6 : शुक्रः--स्ञी, परिवार का सुख, गायन-वादन, खूबसूरती, कला कौशल, विषय भोग, स्वतंञ व्यवसाय, साहित्य, सुख-चैन, आराम, शौक, कामवासना, व्यभिचार, प्रणय, विवाह, कवि, अभिनेता, हीरा शेयर्स आदि का कारकत्व शुक्र ग्रह के पास हैं।
7 : शनिः--परेशानी, क्लेश, कष्ट, जीवन, मौत, क्रोध, लोभ, मोह, दरिद्रता, यौन, रोग, मजदूर, शारीरिक मेहनत करनेवाले, खदान, खनिज पदार्थ, कायदे-कानूनों में रुचि, विलंब, गरीबी, पराधीनता, अपराध, अपमान, मुसीबतें, नेता, जन कल्याण के लिये परिश्रम करनेवाला गरीबों के लिये त्याग करनेवाला आदि का कारकत्व शनि ग्रह के पास हैं।
8 : राहुः--आलस्य, अस्थिरता, स्थावर, रोग आदि का कारक राहु हैं।
9 : केतुः-- धन-लाभ, लेखन, शञुविजय, तस्कर, ठगी आदि का कारक ग्रह केतु हैं।
उपर्युक्त चिञ में जहाँ 1 अंक हैं उस को लग्न कहा जाता हैं। इसके स्वामी को लग्नेश कहते हैं।
इसी तरह से 1, 4, 7 और 10, भावों को केन्द्र कहते हैं।
2, 5, 8, 11 ओर 12 भावों को पणफर कहते हैं।
3, 6 ओर 9 भावों को आपोक्लिम कहते हैं।
5 ओर 9 भावों को ञिकोण कहते हैं।
2 ओर 8 भावों को मारक स्थान कहते हैं।
3, 6, 10 ओर 11 भावों को उपचय स्थान कहते हैं।
जैसे दूसरा भाव धन भाव होता हैं उसके स्वामी को धनेश कहते हैं। चौथे भाव को सुख स्थान कहते हैं इसके स्वामी को सुखेश कहते हैं। इसी तरह सभी को जानें।
12 मिनट में आधी घटी होती है
24 मिनट में 1 घटी होती है
1 घंटा में ढ़ाई घटी होती है
2 घंटे में 5 घटी होती है
5 घंटे में साढ़े 12 घटी होती है
10 घंटे में 25 घटी होती है
20 घंटे में 50 घटी होती है
24 घंटे में 60 घटी होती है
1 दिन में 24 घंटे या 60 घटी होती हैं।
अब यहाँ हम आपको कुंङली बनाने के बारे में बता रहे हैं। कुण्डली क्या हैं जातक के जन्म समय में जो ग्रहो की स्पष्ट स्थिति होती हैं उसी को जन्म कुंडली कहते है। उसी से जीवन के बारे में जाना जाता है। इस कारण जातक का सही समय, तारीख व स्थान होना जरुरी हैं जन्म पञी के निर्माण से हम जातक की ग्रह स्थिति जान कर फलादेश निकाल सकते हैं इसके लिये हमें सबसे पहले इष्टकाल बनाना चाहिए।
इष्टकाल क्या होता हैं? सूर्योदय से जन्म समय तक के काल को "इष्टकाल" कहते हैं।
सूञ : जन्म समय में से सूर्योदय समय को घटा कर ढ़ाई गुणा करने से इष्टकाल होता हैं।
उदाहरण :- हम यहाँ पर जिस बालक का जन्म 10 मार्च 2012 को दोपहर 11-30 पर दिल्ली में हुआ हैं उसका इष्टकाल निकालना बता रहे हैं। सबसे पहले दिवाकर पंचांग से दिल्ली का सूर्योदय जान लें। 10 मार्च को दिल्ली का सूर्योदय 6-37-51 पर हैं और सूर्यास्त 6-20-40 पर हैं जो दिवाकर पंचाँग में लिखा हैं।
जन्म समय : 11-30
सूर्योदय दिल्ली : 6-37-51
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घटाया : 4-52-9 शेष बचें
शेष 4- 52- 9 को घटी पल बनाने के लिये ढ़ाई से गुणा किया तब 12- 10- 22 आया ये इष्टकाल हुआ ।
इष्टकाल के माध्यम से अब हम आपको लग्न निकालना बता रहे हैं। लग्न निकालने के लिये हमे सबसे पहले " सूर्यस्पष्ट " दिवाकर पंचाँग से लेना पङेगा सो हमने 10 मार्च 2012 का सूर्यस्पष्ट 5-30 बजे का लिया जो 10-25-47-15 लिखा हैं अब हमारा जन्म 11-30 पर हैं इसे 11-30 बजे का स्पष्ट किया तो आया 10-26-2-13 शुद्ध स्पष्ट 11-30 का बना।
( हम आपको आगे ग्रह स्पष्ट करना सरलता से बतायेगें ) अब सूर्य स्पष्ट को दिल्ली की लग्न सारणी में देखा जो दिवाकर पंचाँग में होती हैं (दिवाकर पंचाँग पेज 179) । बांयी तरफ राशि और ऊपर अंश होते हैं सूर्य स्पष्ट के 10 बांयी तरफ देखे और 26 अंश ऊपर देखे इन दोनों का मिलान जहाँ हुआ वह अंक लेकर इष्टकाल में जोङकर लग्न सारणी में देखे तब बांयी तरफ लग्न व ऊपर अंश होगें। उदाहरणः-- सूर्य स्पष्ट के अंश सारणी में देखे तो आया
58-45
12-10-22 :- इष्टकाल जोङा 60 से ज्यादा होने पर घटा दें
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10-55-22
10-55-22 को सारणी में देखा बांयी तरफ 1 आया ऊपर 25-48 आया तो 1-25-48 लग्न स्पष्ट हुआ। अब इसको ऐसा कहेगें वृष लग्न के 25 अंश - 48 पल हुये।इसी प्रकार आप भी निकाल सकते हैं।लग्न सारणी सभी जगह की दिवाकर पंचाँग में होती हैं।सभी पंचाँग अलग-अलग स्थानों के आधार पर बनाये जाते हैं इसलिये इनमें थोङा अन्तर हो सकता हैं एक या आधा अंश का।
अब लग्न तो बन गयी अब इसमें ग्रह बैठाने हैं दिवाकर पंचाँग में ग्रह 5-30 प्रातः के दिये हैं इस कारण इसको 11-30 का स्पष्ट करना हैं 11-30 से 5-30 घटाया तो 6 घंटे बने अर्थात 6 घंटे का स्पष्ट करके 5-30 में जोङ दे तो 11-30 का ग्रह स्पष्ट आ जायेगा फिर कुण्डली में सभी ग्रह को बैठा दे तो कुण्डली तैयार हो जायेगी उसके बाद उसका फलादेश कर सकेगें।
सबसे पहले सूर्यस्पष्ट करेगें पहले 1 दिन का निकाल कर फिर 6 घंटे का निकालें हमे यहाँ 11 मार्च व 10 मार्च के सूर्य स्पष्ट की जरुरत पङेगी। सबसे पहले 11 मार्च का लिया उसमें से 10 मार्च का घटाया तो 1 दिन का निकला जैसेः-
10-26-47-10 (11 मार्च 5-30 का)
10-25-47-15 (10 मार्च 5-30 का)
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00-00-59-55 (सूर्य 1 दिन में 59 कला 55 विकला चला)
00-00-29-57 (अब इसका आधा किया 12 घंटे का)
00-00-14-58 (6 घंटे का)
अब 6 घंटे को 10 मार्च में जोङा
10 - 25 - 47 - 15
+ 0 - 0 - 14 - 58
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10 - 26 - 2 - 13 (ये सूर्य स्पष्ट 11-30 का बना)
इसी तरह आप चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु का निकाल लेवें। यहाँ पर हम सभी का 11-30 का स्पष्ट दे रहे हैं। एक बात और याद रखे कि 60 विकला==1 कला, 60 कला==1 अंश, 30 अंश==1 राशि होती हैं।
10-26-47-10
10-25-47-15
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00-00-59-55
00-00-29-57 (12 घंटा)
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00-00-14-58-30 (6 घंटा)
10-25-47-15
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10-26-02-13 (सूर्य स्पष्ट)
60-02-38-36 (11 मार्च)
05-17-48-38 (10 मार्च)
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00-14-49-58 (शेष 1 दिन का)
00-07-24-59 (12 घंटे का)
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00-03-42-29 (6 घंटे का)
05-17-48-38 (5-30 बजे का)
5-21-31-07 (चन्द्र स्पष्ट)