श्री नारायणदास जी गुरु जी की देख-रेख में श्री लाडली जी की सेवा-पूजा करने लगें। तब एक दिन स्वामी जी को चिन्ता हुई कि इनके बाद कौन सेवा-पूजा करेगा। तब उन्होंने श्री नारायणी देवी के साथ विवाह कराया। उनसे तीन पुञ हुए 1. दादा 2. बाबा 3. लक्ष्मण । इन्हीं तीनों से गोस्वामी परिवार बढ़ा। जो आज तक श्री लाडली जी (श्री जी) की सेवा के अधिकारी हैं व प्रेम व श्रद्धा से सेवा-पूजा कर रहे हैं।
इसके बाद एक दिन लक्खा सिंह नाम का बनजारा श्री जी (राधारानी) की महिमा सुनता हुआ बरसाने पहुँचा। ब्रह्माचल पर्वत के पीछे डेरा डाला। फिर वह दर्शन के लिये श्री जी (राधारानी) के मंदिर में गया। शयन आरती पर शंख के जल का छीटा लगा, पुजारी जी ने भोग-प्रसाद दिया। प्रसाद खाय ह्रदय शरीर सब पविञ हुआ। उस समय उसकी समाधि लग गयी, श्री जी (राधारानी) ने पविञ ह्रदय जान कृ पा करी। तभी उसने संकल्प लिया कि मेरा सब कुछ तन, मन , धन श्री जी को अर्पण हैं। तब उसने विशाल मंदिर बनवाया। श्री जी को उसमें पधराय सेवा चली तथा अपनी सारी सम्पत्ति पर्वत के पीछे खेतों में गाङ दी, बीजक बना दिया कि शिखर की परछाई जब पङेगी वहाँ पर धन गढ़ा हैं (बीजक उपलब्ध नहीं)। तब उसके बाद भक्त बनजारा ने अपना सारा जीवन श्री जी की सेवा में लगा कर अंत में श्री राधा जी की कृपा से कल्याण हुआ। तब से बङे-बङे सेठ आने लगे। मंदिर और विशाल हुआ तथा श्री जी (राधारानी) की सेवा-पूजा होने लगी और भक्तजन भोग प्रसाद लाने लगे।
उसके बाद मंदिर का निर्माण जीर्णोद्धार होता गया। हरगुलाल सेठ बेरी वाले ने सिंहपोर मंदिर आदि का जीर्णोद्धार करवाया तथा श्री जी का भोग-राग फल-फूल की सेवा की, एक कालेज का निर्मान करवाया जो आज तक चल रहे हैं। श्री जी के वास्ते फल-फूल जल के लिये राधाबाग व किशनबाग भी हैं। श्री जी (राधारानी) राधाबाग का पानी पीती हैं।
1 : श्रीमन् नारायण |
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2 : श्री ब्रह्मा |
3 : श्री नारद |
4 : वेदcयास |
5 : मध्वाचार्य्य |
6 : श्री पद्मनाभ |
7 : श्री नरहरि |
8 : श्री माधव |
9 : श्री अक्षोभ |
10 : श्री जयतीर्थ |
11 : श्री ग्यानसिन्धु |
12 : श्री महानिधि |
13 : श्री विद्यानिधि |
14 : श्री राजेन्द्र |
15 : श्री जयधर्म्म |
16 : श्री ब्रह्मण्य |
17 : श्री पुरुषोत्तम |
18 : श्री cयासतीर्थ |
19 : श्री लक्ष्मीपति |
20 : श्री माधवेन्द्र |
21 : श्री इश्वरपुरी |
22 : श्री इश्वरपाद शिष्य श्री राधा कृष्णमिलित विग्रह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु |
23 : महाप्रभुपार्षद श्री राधिका स्वरुप श्री गदाधर पंडित गोस्वामी |
24 : पंडित श्री गदाधर गोस्वामी शिष्य इन्दुलेखावतार श्री कृष्ण दास ब्रह्मचारी |
श्री नारायणभट्ट जी के अनेक शिष्य-प्रशिष्य हुये, मारवाङ, करौली आदि में।
अब हम ब्रजाचार्य्य, रासाचार्य्य, ब्रजयाञाचार्य्य, श्री जी (राधारानी) तथा श्री नारायणभट्टाचार्य्य जी की जय-जयकार करके सबसे क्षमा चाहते हैं। कोई ञुटि होए तो श्री जी का सेवक जानकर रसिकजन, प्रेमीजन, भक्तजन अवश्य क्षमा भाजन करें। बोलो लाडलीलाल की जय, स्वामी जी की जय, श्री भट्टनारायण की जय जय, श्री राधारानी की जय हो।
आषाढ़ सुदी दौज को श्री राधारानी जी व श्री नारायणभट्ट जी का पाट उत्सव मनाते हैं। इस दिन सभी गोस्वामी परिवार हलुआ व लोई बनाकर श्री स्वामी जी की पूजा करते हैं व श्री राधारानी (श्री जी) की जय जयकार करते हैं।
श्रावण मास में सिंघारा तीज से पूर्णिमा तक झूला पङते हैं। श्री जी (राधारानी) बाहर (जगमोहन में) में चाँदी सोने के हिंडोले में झूला झूलती हैं। तीज को शाम को श्री राधारानी नीचे सफेद छत्तरी (जन्म स्थान) में सभी भक्त जनों को दर्शन देती हैं।
भाद्रपद मास में श्री कृष्ण जी का जन्मोत्सव रात 12 बजे मनाते है स्नान, भोग, आरती आदि। 15 दिन बाद भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष, अष्टमी तिथि को राधाष्टमी प्रातः 5-30 बजे बङी धूम धाम से मनायी जाती हैं। उस समय श्री राधारानी जी को दूध-दही से स्नान कराया जाता हैं। बङी संख्या में भक्तजन आते हैं उसके एक दिन पहले लडडू लीला, समाज गायन (गोस्वामी परिवार द्वारा) होता हैं। उसी दिन शाम को नीचे जन्म स्थान (सफेद छतरी) में सभी को दर्शन देती हैं।
उस समय आकाश में देव. गन्धर्व, अप्सरा सभी फूल बरसाते हैं। इस समय बूढ़ी लीला शुरु होती हैं और चाव (शोभा याञा) भी निकलती हैं। पूर्णिमासी को राधा बाग में महारास होता हैं।
आश्विन मास में श्री जी (राधारानी) मंदिर पर " साँझी" बनती हैं।
आश्विन शुक्ल पक्ष में शरद् पूर्णिमासी को सफेद पोशाक में बाहर दर्शन होते हैं व खीर का भोग लगता हैं।
कार्तिक मास में दीपावली पर रोशनी से मन्दिर की शोभा देखते बनती हैं व गोवर्धन वाले दिन मंदिर पर अन्नकूट का भोग लगता हैं व सभी गोस्वामी परिवार प्रसाद पाते हैं।
पौष मास में राधा जी को खिचङी का भोग लगता हैं 20 दिन पौष के व 10 दिन माघ के।
माघ मास में बसंत पंचमी पर श्री राधा जी बसंती पोशाक में दर्शन देती हैं। उसी दिन से होली की शुरुआत होती हैं। अवीर गुलाल उङता हैं, समाज में पद में गाये जाते हैं।
फाल्गुन मास में रंगीली होली नवमी के दिन रंगीली गली में बङी धूमधाम से होती हैं। ढ़ोल नगाङे बजाकर पद गाते हैं। उस दिन नन्दगाँव से गोपबालक ढ़ाल लेकर आते हैं व बरसाने की गोपियाँ (जो गोस्वामी परिवार की बहू) होती हैं वे लठ्ठ बरसाती हैं इसे बरसाने की लठ्ठमार होली कहते हैं और मंदिर पर रंग की होली होती हैं कोई भी भक्त ऐसा नहीं जिस पर रंग ना चढ़ा हो, अवीर गुलाल उङते हैं।